ਕਾਫੀਆਂ ਬਾਬਾ ਬੁੱਲੇ ਸ਼ਾਹ

Kaafian Baba Bulle Shah





ਅਬ ਲਗਨ ਲਾਗੀ ਕੀਹ ਕਰੀਏ  AB LAGAN LAGI KI KARIE

ਤੁਮ ਸੁਨੋ ਹਮਾਰੀ ਬੈਨਾ
ਆਏ ਰਾਤ ਦਿਨ ਨਹੀਂ ਚੈਨਾਂ
ਹੁਣ ਪੀ ਬਿਨ ਪਾਲਕ ਨਾ ਸਰੀਏ

ਅਬ ਲਗਨ ਲਾਗੀ ਕੀਹ ਕਰੀਏ
ਨਾ ਜੀ ਸਕੀਏ ਨਾ ਮਰੀਏ

ਇਹ ਅਗਨ ਬਿਰਹੋਂ ਦੀ ਭਾਰੀ
ਕੋਈ ਹਮਰੀ ਪ੍ਰੀਤ ਨਿਵਾਰੀ
ਬਿਨ ਦਰਸ਼ਨ ਕੈਸੇ ਤਰੀਏ

ਅਬ ਲਗਨ ਲਗੀ ਕੀਹ ਕਰੀਏ
ਨਾ ਜੀ ਸਕੀਏ ਨਾ ਮਰੀਏ

ਬੁੱਲ੍ਹਾ ਪਈ ਮੁਸੀਬਤ ਭਾਰੀ
ਕੋਈ ਕਰੋ ਹਮਾਰੀ ਕਾਰੀ
ਏਹੋ ਜੈਹੇ ਦੁਖ ਕੈਸੇ ਜਰੀਏ

ਅਬ ਲਗਨ ਲਗੀ ਕੀਹ ਕਰੀਏ
ਨਾ ਜੀ ਸਕੀਏ ਨਾ ਮਰੀਏ

Tum Suno Hamari Baina
Aaye Raat Din nahin Chaina
Hun pi bin palak na sarie

Ab Lagan Lagi keeh karie
Na ji sakie na marie

Eh Agan birhon di bhari
Koi Hamri preet niwari
Bin Darshan kaise tarie

Ab Lagan Lagi keeh karie
Na ji sakie na marie

Bullah paee Musibat bhari
Koi karo Hamari kaari
Eho jaihe Dukh kaise jaire

Ab Lagan Lagi keeh karie
Na ji sakie na marie


मेरी बुक्कल दे विच चोर

मेरी बुक्कल दे विच चोर नी,
मेरी बुक्कल दे विच चोर|

साधो किस नूं कूक सुणावां,
मेरी बुक्कल दे विच चोर,
चोरी चोरी निकल गिआ,
ते जग विच पै गिआ शोर|

जिस नाता तिस जाण लिआ,
ते होर होए, झुर मोर,
चुक गए सारे झगड़े झेड़े,
निकल पिआ कोई होर|

मुसलमान सिवे तों डरदे,
हिन्दू डरदे गोर,
दोवें एसे दे विच मरदे,
इहो दोहां दी खोर|

किते रामदास किते फ़तेह मुहम्मद,
इहो क़दीमी शोर,
मिट गिआ दोहां दा झगड़ा,
निकल पिया कुझ होर|

अरभ मुनव्वर बांगां मिलियां,
सुणियां तख्त लहौर,
शाह इनायत कुंडियां पाइयां
लुक छुप खिचदा डोर|

मेरी बुक्कल में चोर

मेरी बुक्कल में चोर है री| वह चितचोर कहीं बाहर नहीं, अन्दर ही है| वह चोर तो मेरी बुक्कल में है| साधो, मैं चीख़-चीख़कर किसे सुनाऊं कि मेरी बुक्कल में चोर है| वह चोरी-चोरी निकल गया, और संसार-भर में शोर मच गया| वह प्रिय संसार-भर मैं तरह-तरह के रंग-रूप धारण करता है, जिससे न जाने कितने झगड़े उठ खड़े होते हैं|

जिसने उसे समझने का यत्न किया, उसे ज्ञान हो गया, शेष सभी मोरों के समान झुरते-बिसूरते रह गए| जब वास्तविकता का पता चला, तो सभी विवाद समाप्त हो गए| खोजने पर ज्ञात हुआ कि असली मालिक तो कोई और ही है|

मुसलमान मृतक को जलाए जाने से डरते हैं और हिन्दू क़ब्र में दफ़नाए जाने से डरते हैं, दोनों इसी भय से मरते रहते हैं कि कहीं ऐसा न हो जाए, तो दोज़ख़ (नरक) न मिले और यही उनके परस्पर वैमनस्य का कारण है|

कहीं किसी मनुष्य का नाम रामदास रख दिया जाता है और कहीं कोई मनुष्य फ़तेह मुहम्मद के नाम से जाना जाता है| प्राचीन काल से यही झगड़ा चला आता है| जब यह जान लिया कि परमात्मा दोनों में एक ही है, तो दोनों का आपसी झगड़ा मिट गया|

यहां तक संकेत भी प्राप्त होता है कि फ़ादिरी सम्प्रदाय का प्रथम सद्गुरु पीर दस्तगीर बग़दाद का रहने वाला था| वहां की नमाज़ की अज़ान लाहौर में सुनाई देती है| यानी शाह इनायत उस ईश्वरीय वाणी को सुन सकते हैं, मेरे मुर्शिद शाह इनायत ने मुझे (मछली की तरह) कुंडी में फंसा रखा है| वही छुपकर डोरी को खींचता रहता है|




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